भगवान शिव शंकर भक्तों की प्रार्थना से बहुत जल्द ही प्रसन्न हो जाते हैं. इसी कारण उन्हें 'आशुतोष' भी कहा जाता है ! वैसे तो धर्मग्रंथों में प्रभु भोलेनाथ की कई स्तुतियां हैं, पर श्रीरामचरितमानस का 'रुद्राष्टकम' अपने-आप में अनुपम है , मनोहर है.
'रुद्राष्टकम' केवल गाने के लिहाज से ही नहीं, अपितु भाव के नजरिए से भी एकदम मधुर है ! यही वजह है शिव के आराधक इसे याद रखते हैं और पूजा के समय सस्वर पाठ करते हैं. 'रुद्राष्टकम' और इसका भावार्थ आगे दिया गया है...
Shiv Rudrashtakam Stotram
Shiv Rudrashtakam Lyrics In Hindi
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेदस्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ।। 1
हे मोक्ष स्वरुप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेद स्वरुप, ईशान दिशा के ईश्वर तथा सब के स्वामी श्री शिव जी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात माया आदि से रहित ), गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाश एवं आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करने वाले दिगंबर [ अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले आपको मैं भजता हूँ ।।
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिराघ्यानगोतीतमीशं गिरीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ।। 2
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनो गुणों से अतीत ), वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करते हूँ ।
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।। 3
जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिरपर सुन्दर गंगा नदी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीय का चन्द्रमा और गले में सर्प सुशोभित है ।।
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ।। 4
जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं; जो प्रसन्नमुख, नीलकंठ, और दयालु हैं; सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्ड माला पहने हुए हैं; उन, सबके प्यारे और सबके नाथ [ कल्याण करने वाले ] श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ।।
प्रचण्डं प्रकृष्टम प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् ।
त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहम भवानीपतिं भावगम्यम् ।। 5
प्रचंड (रुद्ररूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मा, करोड़ों सूर्यों के सामान प्रकाश वाल, तीनों प्रकार के शूलों ( दुःखों ) का निर्मूलन ( निवारण ) करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, भाव ( प्रेम ) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी (माँ पार्वती ) के पति श्री शंकर जी को मैं भजता हूँ ।।
कालातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।। 6
कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत ( प्रलय ) करने वाल, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथने वाले कामदेव के शत्रु हे प्रभो, प्रसन्न होईये, प्रसन्न होईये।।
न यावद् उमानाथ पादारविन्दम
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शान्तिसन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्व भूतादिवासम् ।। 7
जब तक पार्वती के पति आपके चरण कमलों को मनुष्य नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक और न ही परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न ही उनके तापों का नाश होता है। अतः हे समस्त जीवों के अंदर ( ह्रदय में ) निवास करने वाले प्रभो ! प्रसन्न होइए।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहम सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जराजन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।। 8
मैं न तो योग जानता हूँ, न ही जप और न पूजा ही। हे शम्भो मैं तो सदा सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभो ! बुढ़ापा और जन्म ( मृत्यु ) के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिये। हे ईश्वर ! हे शम्भो ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ।।
श्लोक
।। रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।
भगवान रूद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शंकर जी की तुष्टि ( प्रसन्नता ) के लिए ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्ति पूर्वक पढ़ते है, उन पर भगवान् शम्भू प्रसन्न होते हैं।।
।। इति श्री गोस्वामी तुलसीदासकृतं रुद्राष्टकम सम्पूर्णम् ।।
इस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास के द्वारा रचित यह रुद्राष्टक पूरा हुआ
Shiv Rudrashtakam Lyrics In Hinglish
Namami- shamishan nirvan rupam,
Vibhum vyapakam brahmvedaswarupam,
Nijam nirgunam nirvikalpam nireeham,
Chidaakaash maakaashvaasam bhajeaham. 1.
Nirakar monkaar mulam tureeyam,
Giragyan gotitmeesham girisham,
Karalam Mahakal kaalam kripalam,
Gunagaar sansaar paaram natoaham. 2.
tusharadri sankaash gouram gambhiram,
manobhut kotiprabha shri shariram,
sphuranmouli kallolini chaaru ganga,
lasadbhaal baalendu kanthe bhujanga. 3.
chalatkundalam bhru sunetram vishaalam,
psannananam neelkantham dayaalam,
mrigadheesh charmambaram mundmaalam,
priyam shankar sarvnaatham bhajaami. 4.
prachandam prakrishtam pragalbham paresham,
akshndam ajam bhaanukoti prakasham,
trayah shul nirmulanam shulipaanim,
bhajeaham bhavaanipatim bhaavgamyam. 5.
kalaateet kalyan kalpaantkaari,
sada sajjananand data purari,
chidanand sandoh mohapahari,
prasid prasid prabho manmathaari. 6.
na yaavad umanaath padarvindam,
bhajam teeh loke pare va naraanaam,
na taavad sukham shaanti santaapnaasham,
prasid prabho sarv bhutadivaasam. 7.
na jaanaami yogam japam naiv pujaam,
natoaham sada sarvada shambhu tubhyam,
jarajanm duhkhough taatapymaanam,
prabho paahi aapannamamish shamobho. 8.
Shlok
rudrashtak midam proktam vipren hartoshaye,
ye pathanti nara bhaktya teshaam shambhu prasidati ||
iti shri shiva rudrashtakam sampurnam
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