एक सामाजिक चिंतन - कोरोना एक महामारी या प्रकृति का कहर ? | सामाजिक समस्या | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

 कोरोना एक महामारी या प्रकृति का कहर ?

एक सामाजिक चिंतन - कोरोना एक महामारी या प्रकृति का कहर ? | सामाजिक समस्या | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

यह सर्वविदित है कि हम मृत्युलोक पर निवास करते है। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। चाहे वो मनुष्य हो, पशु हो, पक्षी हो, वन्य जीव-जन्तु हो या जल के जीव, सबकी मृत्यु का समय निश्चित है तो फिर क्यों हम इन जीव-जन्तुओं को मारकर उनको अपना आहार बना रहे है ? 

क्या ये प्रकृति के विरूद्ध नही है ? 

क्यों उनकी आजादी हमने छीन ली ?

क्यों उन्हे हमने पिंजरों मे कैद किया ?

क्यों उन्हे हमने अपने मनोरंजन का साधन बना लिया ?

क्यों हम उनके हत्यारें बन गए ?

ये कुछ ऐसे सवाल है जो प्रकृति हमसे पूछ रही है, और जिनका जवाब तक हमारे पास नही है, सत्य तो ये है कि प्रकृति हमारा पालन-पोषण कर रही है पर हम इसका उल्टा समझ बैठे है और लगातार विज्ञान की सहायता से ऐसे आविष्कार करने मे लगे हुए है जो प्रकृति के विरूद्ध है और प्रकृति के साथ एक खिलवाड़ है।

प्रकृति ने सबको बराबर अधिकार दिये है चाहे वो मनुष्य हो या जीव-जन्तु। स्वयं भगवान भी प्रकृति के कार्य मे हस्तक्षेप नही करते। फिर हम क्यों बार-बार चाहे अनचाहे रूप में प्रकृति के कार्य मे बाधा डाल रहे है ?
जैसा कि हमें पता है कि कोरोना नामक एक महामारी का कहर भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में बढ़ता ही जा रहा है। क्या कुछ हद् तक इसके जिम्मेदार हम नही ? इस वायरस की शोध मे पाया गया कि ये वायरस मांसाहार से फैला है। क्यों हम मनुष्यों ने जीव-जन्तुओं की हत्या कर उनका आहार करना शुरू कर दिया ? क्या उन जीव-जन्तुओं के जन्मदाता हम मनुष्य है ? अगर नही तो उनकी हत्या का अधिकार हमें किसने दिया ?

जिन जीव-जन्तुओं का जन्म इस धरती पर हुआ है उनकी मृत्यु भी निश्चित है फिर क्या हम मनुष्य उनकी हत्या और आहार कर प्रकृति का संतुलन नही बिगाड़ रहे है ? वातावरण को, नदियों को दूषित करने के जिम्मेदार भी हम मनुष्य ही है। हमने ही जीव-जन्तुओं को अपने स्वार्थ और मनोरंजन के लिए पिंजरों मे कैद किया।


लेकिन आज प्रकृति अपना रोष प्रकट कर रही है इसका जीवीत उदाहरण हमारे सामने है, जिन जीव-जन्तुओं को हमने पिंजरों में कैद किया, उनकी आजादी छीनी, आज हम अपने घरों मे कैद है और सारे जीव-जन्तु, पशु-पक्षी आजाद है, जहां पूरा वातावरण दूषित रहता था, वही आज हमारे घरों में कैद होने से वातावरण, जल, हवा सब प्रदूषण मुक्त हो गया है। शायद कहीं ना कहीं इन सब संकटो और परेशानियों का कारण हम ही है।

यदि हमें इन सब परेशानियों से भविष्य में मुक्ति चाहिए तो हमें किसी ओर को दोष ना देकर खुद को बदलना होगा। क्योंकि प्रकृति के रोष का कारण कोई और नही स्वयं मनुष्य है। जो सब कुछ जानकर भी अन्जान बना हुआ है और दिन प्रतिदिन प्रकृति से खिलवाड़ करता ही जा रहा है। और इसी का परिणाम हम आज हम भुगत रहे है और य़दि अभी भी ना रूके तो शायद भविष्य में हमें और भी भयंकर परिणाम झेलने पड़ेंगे। आशा है हम इस संकट से सीख लेकर प्रकृति के हित को ध्यान में रखकर जीवन के तरीके को बदले !

लेखक - करन सूद 

Saransh Sagar


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