श्री राम के परम भक्त हनुमान जी का जन्म चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा को मंगलवार के दिन हुआ था । इनकी माता का नाम देवी अंजनी तथा पिता का नाम केसरी था । यह रुद्रावतार थे । एवं कलियुग में अमर आठ देवगण में से एक है
हनुमान जी के अमर होने का तात्पर्य
यदि आपका आचरण हनुमान जी के आचरण के तुल्य होगा तो जैसे वह अमर है आप भी अमृत्व को प्राप्त होंगे । मैंने ये देखा की बहुत से लोग न जाने कितने समय से हनुमान जी के परम भक्त रहते हुए उनकी अर्चना करते हैं जिसका इन लोगो को दम्भ भी होता है लेकिन वास्तविकता ये होती है कि उन्होंने अपने जीवन के अंदर उनके आचरण के अनुरूप कुछ भी नहीं उतारा होता है अर्थात इस भूपटल पर यदि अमर होना चाहते हैं तो हनुमान जी की भांति अपना जीवन निर्वाह कीजिये ।
हनुमान जी के जीवन की प्रचलित जन्म कथा
पवन पुत्र हनुमान जी भगवान शिव का अवतार है । एक बार जब रावण का विनाश करने हेतु भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर श्री राम जी का अवतार लिया था तब भगवान शिव ने अपने इष्ट देव की सेवा करने एवं रावण का विनाश करने में उनकी सहायता करने के लिए हनुमान जी का अवतार लिया था । इस कार्य के लिए उन्होंने पवन देव को बुलाया । भगवान शिव ने अपना दिव्य पुंज पवन देव से माता अंजनी के गर्भ में स्थापित करने को कहा । क्योंकि माता अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रही थीं । तब पवन देव ने माँ अंजनी के कान के माध्यम से भगवान शिव का दिव्य पुंज स्थापित किया । इसीलिए इन्हें पवन पुत्र भी कहा जाता है और पिता, पवन देव ने उन्हें उड़ने की शक्ति प्रदान की ।
भगवान शिव का अवतार होने के कारण वो बहुत ही तेजस्वी और शक्तिशाली थे । एक बार प्रातःकाल के समय अपने माता पिता की अनुपस्थिति में उन्हें भूख लगी । वे खाने की वस्तु इधर- उधर खोजने लगे तब उनकी नजर आसमान में चमकते सूर्य पर पड़ी । सूर्य को कोई चमकीला फल समझकर खाने के लिए उसके लिए निकट बढ़ने लगे । जब पवनदेव ने उन्हें वायुमंडल में उत्साहित होकर उड़ते हुए देखा तो वो भी उनकी सहायता करने हेतु उनके पीछे – पीछे जाने लगे ।
सूर्य देव ने भगवान शिव को बालक रूप में जब अपनी ओर आते देखा तो अपनी किरणें शीतल कर ली।चूँकि उस दिन अमावस्या का दिन था और इंद्रदेव ने राहु को सूर्यदेव पर ग्रहण लगाने का कार्य दिया था । राहु को सूर्य की ओर आता देख बालक हनुमान ने राहु को परास्त कर सूर्य को निगल लिया और तब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया । और तब इंद्र देव ने घबरा कर अपने वज्र से हनुमान पर प्रहार किया जिससे उनकी ठुड्डी का कुछ भाग क्षतिग्रस्त हो गया । और तब पवनदेव उन्हें उठाकर गुफा में ले आये । पवन देव ने क्रोधित होकर अपनी गति को रोक दिया । सभी देवगण ने परेशान होकर ब्रह्मा जी को पूरी घटना बताई । ब्रह्मा जी के अनुरोध करने पर पवन देव ने अपनी गति वापस की और हनुमान जी ने भी सूर्य को मुक्त किया , तब सूर्य देव ने बालक हनुमान को समस्त शास्त्रों का ज्ञान कराने का कार्य भार लिया एवं वरुण देव ने जल से निर्भय होने का तथा ब्रह्म देव ने उन्हें ब्रह्मज्ञान देकर ब्रह्मपाश से मुक्त किया । और इसी कारण श्री हनुमान में सभी भगवानों की ऊर्जा निहित है । सिर्फ इन्हीं का नाम लेने से सभी शोक और दोषों का निवारण हो जाता है । इस प्रकार सभी देवी देवताओं ने वरदान देकर हनुमान जी को अत्यंत बलशाली बना दिया।
नटखट थे हनुमान
बालक हनुमान बचपन से ही बहुत ही नटखट थे । वे ऋषि – मुनियो को बहुत तंग करते थे । तब ऋषियों ने सोचा इसे अपने बल का अहं है और क्रोधित होकर उन्हें अपनी शक्ति भूलने का श्राप दे दिया , और कहा जब तक कोई उन्हें अपनी शक्तियां याद नहीं कराएगा उन्हें उनकी शक्तियां याद नहीं आएँगी । ऋषियों से श्रापित हैं हनुमान तब वह शक्ति माता सीता का पता लगाते समय जामवंत ने उन्हें उनकी शक्तियां याद दिलायीं । तब उन्होंने समुद्र पार कर माता सीता का पता लगाया और रावण का विनाश करने में भगवान श्री राम का सहयोग किया ।
श्री हनुमान जी का शक्ति भूलना और उसका हमारी कुंडली से सम्बन्ध
आपने ये अनुभव किया होगा की किसी से भी झगड़ा करते समय , किसी इंटरव्यू में, किसी को उत्तर देते समय आप कुछ बातें भूल जाते हैं । जिसका स्मरण आपको बाद में होता है और कभी- कभी आप ये सोचकर पछताते है की काश ये बात उस समय याद आयी होती , यह है आपकी कुंडली पर हनुमान जी बात की भूलने का प्रभुत्व । यदि व्यक्ति को सारी बातें, सब समय याद रहेंगी तो उसका अष्टम भाव जाग्रत होगा जो कि उसकी आयु को क्षीण करता है इसलिए यदि ऐसा होता है तो ज्यादा चिंतित होने की बात नहीं है ।
रावण का विनाश करने में बजरंगबली जी का सहयोग
माता सीता के हरण हो जाने पर उनका पता लगाया।
लक्ष्मण को मेघनाथ के द्वारा मूर्छित किये जाने पर संजीवन वूटी लाकर उनके प्राणों की रक्षा की।
लंका में जब माता सीता परेशान होकर अग्नि देव से अपने प्राण त्यागने हेतु अग्नि मांग रही थीं , तो भगवान राम की अंगूठी देकर उनके प्राण बचाये ।
समस्त लंका पुरी को जलाया ।
समुद्र पार करने हेतु राम नाम लेकर पत्थरों से पुल बनाया ।
मेघनाथ द्वारा भगवान राम को नागशक्ति से बाँधने पर गरुण को बुलाकर उन्हें मुक्त कराया ।
इस प्रकार से पूर्णतया: रावण का विनाश करने में भगवान् राम का सहयोग किया ।
उपरोक्त कथनों का यदि आप बारीकी से निरिक्षण करें तो आप पाएंगे की श्री हनुमान ने देवकार्य को संपन्न करने में अपने आप की आहुति लगा दी , और शुरू से लेकर अंत तक अपने निज स्वार्थ के लिए कोई कार्य नहीं किया। ऐसा उपकारी जीवन कितने प्रतिशत है आपके अंदर जितना अधिक होगा उतने अधिक हनुमान जी के निकट अपने आप को पाएंगे आप ।
संकटमोचन से कैसे हारे शनि देव ??
जब हनुमान जी ने लंका जलायी थी तब उन्होंने वहां देखा की रावण ने शनि देव को बंदी बना रखा है तब उन्होंने वहां से उन्हें मुक्त कराया । मुक्त होकर शनि देव जी ने हनुमान जी से वादा किया कि वो कभी भी उनके भक्तो परेशान नहीं करेंगे । कलियुग में एक बार हनुमान जी भगवान् राम की पूजा कर रहे थे । उस समय शनि देव भीषण काला भेष धारण किये वहां पधारे । शनिदेव ने हनुमान जी से कहा की सतयुग की बात और थी अब कलयुग है और कलयुग में सभी प्राणियों पर मेरा प्रभाव अवश्य होगा । और अब आप काफी निर्बल भी है तो मैं आपके शरीर में प्रस्थान करूंगा । तब विनय पूर्वक हनुमान जी ने उनसे जाने का आग्रह किया ।परन्तु शनि देव ने उन्हें निर्बल समझ उनके सर पर बैठ गए । तब हनुमान जी के मष्तिष्क में खाज हुई और उन्होंने उसे मिटाने हेतु एक- एक करके चार पहाड़ अपने सर पर रख लिए । तब शनिदेव जी चिल्लाये और उनके चरणों में आकर क्षमा मांगने लगे। और वचन दिया कि मैं कभी भी आपके भक्तों को परेशान नहीं करूँगा ।
बजरंगबली और शनि देव का आपस में ज्योतिषी सम्बन्ध
हनुमान कारक हैं वेग के, आवेग के, ऊर्जा के जबकि शनि देव कारक हैं कर्म के और उनको न्यायधीश की पदवी प्राप्त है । यदि आप अपने कर्मों (शनि) को हमेशा एक अच्छी ऊर्जा ( मंगल ) से संचालित करते हैं तो इसका फल मीठा होता है क्योंकि यहाँ शनि प्रसन्न हो जाते हैं । यदि आप अकर्मण्य हो जाते हैं जिसका अभिप्राय कुंडली के अंदर मंगल ( हनुमान ) को बंद कर देते हैं ऐसे में शनि प्रबल होकर आपको अत्याधिक परेशान कर सकता है । इसलिए कहा जाता की वो व्यक्ति जो नित्य हनुमान जी की पूजा करके अपने आप को गतिशील रखता है उससे शनि कभी कुछ नहीं कहते ।
महिलाओं के लिए वर्जित नही है हनुमान जी की साधना
हनुमान जी का स्वरुप बाल ब्रह्मचारी का है , और कहीं उनके ब्रह्मचर्य में कोई बाधा न आ जाये इसलिए संभवत: महिलाओं को किन्हीं मनीषियों ने हनुमान जी के समक्ष जाने से मना कर दिया लेकिन यह एक दुष्प्रचार एवं दुष्विचार जो की तत्कालीन पोंगियों की देन है । महिलाएं प्राचीनतम काल से हनुमान जी की पूजा करतीं आयीं हैं और करती रहेंगीं उनके लिए यह निषेध नहीं है । जिस किसी प्राकृतिक कारण से वह किसी अन्य देवी देवताओं की पूजा नहीं कर सकतीं उन्हीं प्राकृतिक कारणों के कारण उस समय हनुमान जी की भी पूजा नहीं कर पाएंगी। मेरे द्वारा महिलाओं की हनुमान उपासना विधि बतलायी गई है जिसके बारे में आप जानकारी ले सकते हैं ।
क्यों चढ़ाते है हनुमान जी को सिंदूर ??
कहा जाता एक बार माता सीता ऊँगली से अपनी मांग में सिन्दूर लगा रही थी । तब हनुमान जी ने उनसे इसका कारण पूछा तब माता ने सरल रूप से बताया कि इसे धारण करने से उनके स्वामी की दीर्घायु होती है तथा वो मुझ पर प्रसन्न रहते है । हनुमान जी ने सोचा कि एक चुटकी लगाने से जब ऐसा होता है तो मैं पूरे शरीर पर ही सिन्दूर धारण कर लेता हूँ । वो पूरे शरीर पर सिन्दूर धारण कर भगवान् राम के सम्मुख गए तो भगवान राम उन्हें देखकर प्रफुल्लित हो हंसने लगे । तब हनुमान जी को माता सीता के वचनों पर द्रढ़ विश्वास हो गया और वे प्रतिदिन सिन्दूर धारण करने लगे । इसीलिए भगवान् भक्ति के स्मरण में उन्हें सिन्दूर अर्पित किया जाता है ।
हनुमान जी का ज्योतिष से सम्बन्ध
हनुमान जी का ज्योतिष से प्रगाढ़ सम्बन्ध है । उन्हें स्वंम सूर्य देव ने शिक्षा प्रदान की थी । हनुमान जी महाबलशाली होने के साथ- साथ महा ज्ञानी भी थे । वह स्वंम एक महान ज्योतिष थे ।
यदि जातक किसी संकट में है, रोगी है , शत्रु का भय, पवन का भय है तो उसे सम्पूर्ण विधि- विधान के अनुसार पूजा संपन्न करनी चाहिए । बजरंगी धाम में ये पूजा जातक के ग्रहो का ज्योतिष विश्लेषण करके उसके अनुसार पूरे विधि विधान से पूजा संपन्न कराई जाती है ।
हनुमान जी का कुंडली के हर भाव से सबंध
मेष और वृश्चिक राशि से सम्बन्ध
सबसे पहले हम राशि मेष और वृश्चिक पर विचार करते हैं । मेष राशि और वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है और मंगल ग्रह के भगवान श्री हनुमान जी हैं । इसलिए यदि इन दोनों राशियों के जातक, हनुमान जी की पूजा करतें हैं तो उनके मंगल बलिष्ठ होते हैं । जिसका परिणाम शुभ होता हैं ।
वृषभ और तुला राशि से सम्बन्ध
वृषभ और तुला दोनों राशियों के स्वामी ग्रह शुक्र हैं । शुक्र ग्रह की स्वामी भगवान विष्णु की भार्या लक्ष्मी जी हैं, और हनुमान जी भगवान विष्णु के परम सेवक हैं । भगवन विष्णु के कथनुसार उनके परम भक्त की जो भक्ति करेगा वो उनके स्नेह का पात्र बनेगा । माँ लक्ष्मी उनसे कैसे अप्रसन्न होंगी जो उनके परेश्वर का भक्त हो, अर्थात जो हनुमान जी की पूजा करता है उसकी वो दो राशियां जिसकी अधिष्ठात्री लष्मीजी हैं, वह बलिष्ठ हो जाती है ।
मिथुन और कन्या राशि से सम्बन्ध
इन राशिओं के जो शासक ग्रह है वो बुध हैं और बुध के अधिदेवता भगवन गणेश जी हैं । भगवान गणेश जी के पिता शिव जी हैं और और भगवान हनुमान शिव जी का प्रतिरूप हैं तो इस प्रकार भी भगवान् हनुमान की पूजा से उनके अनुज प्रसन्न होंगे जिसके फल स्वरुप यह दो राशियां मिथुन और कन्या बलिष्ठ होगी ।
कर्क राशि से सम्बन्ध
कर्क राशि का शासक ग्रह चन्द्रमा हैं और चन्द्रमा को भगवान शिव जी ने अपनी जटाओं में स्थान दिया हैं व हनुमान जी शिवांश हैं तो इसके फलस्वरूप भी इस राशि के जातकों को हनुमान जन्म की पूजा करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप चंद्र वलिष्ठ होता हैं और चंद्र राशि बलिष्ठ होती है ।
सिंह राशि से सम्बन्ध
सिंह राशि का शासक सूर्य ग्रह हैं , और सूर्य के आदिदेव भगवान विष्णु है और भगवान हनुमान सूर्य देव के परम प्रिये शिष्य भी हैं अतः भगवान हनुमान जी की पूजा करने पर सूर्य देव प्रसन्न होते हैं जो की विशेष फलदायी हैं ,और इस कारण से सिंह राशि बलिष्ठ होती है ।
धनु और मीन राशि से सम्बन्ध
इन दोनों राशियों के शासक ग्रह बृहस्पति हैं , बृहस्पति के अधिदेवता भगवान विष्णु जी हैं । जैसा की पहले बताया की भगवान हनुमान जी को भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त है । भगवान हनुमान जी की पूजा करने पर बृहस्पति वलिष्ठ होता है जो की दोनों राशिओं के लिए शुभ हैं ।
मकर और कुम्भ राशि से संबंध
इन दोनों राशियों के शासक शनि ग्रह हैं और शनि देव कभी भी श्री हनुमान जी के भक्तों को कुछ नहीं कहते है,जैसा उपरोक्त मैंने बतलाया । अतः इन दोनों राशिओं के जातकों को अपनी कुंडली का शनि अनुकूल करने के लिए भगवान हनुमान की उपासना करनी चाहिए
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