परिचय :- हनुमानजी बल बुद्धि और विद्या से संपन्न है पर उनकी एक और विशेषता थी भोजन। हनुमानजी को भूख बहुत लगती थी। और भूख उनसे सहन नहीं होता था। रामायण काल में कई जगहों इसका प्रमाण मिलता है यथा:- बाल्यावस्था में सूर्य को फल समझ कर खा जाना, भूख के कारण अशोक वाटिका को उजाड़ देना, माता सीता की रसोई में भोजन करना आदि। यद्यपि हनुमानजी जितेन्द्रिय है पर यदा कदा अपनी लीलाओ और श्रीराम के कार्यो की सिद्धि हेतु इस प्रकार की विभिन्न लीलाये की है। आइये इनमे से उनके बाल्यकाल की भूख से जुड़ी एक कथा पर चिंतन करे।
हनुमान जी की भूख:- बाल्यावस्था में एक बार हनुमान जी आश्रम में क्रीड़ा कर रहे थे। तभी उन्हें जोर से भूख लगी। उन्होंने अपनी माँ से कुछ खाने को माँगा। माता अंजना उनके लिए आश्रम में फल लाने गई। माता को फल लाने में थोड़ी देर हो गई। तब तक हनुमानजी की नजर उगते हुए सूर्य पर पड़ी और हनुमानजी ने उसे ही पका हुआ लाल फल समझ कर खाने का निश्चय कर किया। हनुमानजी वायु वेग से सूर्य की तरफ आगे बढ़ने लगे।
बाल समय रवि भक्ष लियो, तब तिनहुं लोक भयो अंधियारो ।
ताहि सो त्रास भयो जग को, यह संकट काहू सो जाता न टारो ।
देवन आनी करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो ।।
पवन और सूर्य द्वारा सहायता:- उनको आगे बढ़ता देख पवन देव ने उनकी सहायता की और उनके वेग को और बड़ा दिया। सूर्य नारायण ने जब यह देखा की एक नन्हा सा अबोध बालक मेरी तरफ बड़ा चला आ रहा है तब उन्होंने भी अपने तेज को शांत कर लिया।
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
राहु से युद्ध:- जब हनुमानजी सूर्य के पास पहुंचे तब उसी समय राहु वहां आ गया और सूर्य में ग्रहण लगाने के लिए अपना स्पर्श प्रारम्भ किया। हनुमान जी को लगा की राहु उनके फल को खाने आया है तब हनुमान जी ने राहु को एक घूँसा मार कर भगा दिया और सूर्य को फल समझ कर निगल गए । सूर्य एक तपते हुए गोले की भाँती लाल रंग के थे उनके तेज को सहने का सामर्थ किस में न था पर हनुमानजी ने उनके तेज को सहा ही नहीं अपितु उसे अपने मुख में ग्रहण कर लिया।
सूर्य को निगलने से सृष्टि में हाहाकार:- जैसे ही हनुमानजी ने सूर्य को अपने मुख के भीतर किया सारी सृष्टि में अंधकार व्याप्त हो गया मानो दिन में अमावश्या के सामान रात्रि का आभास होने लगा। सारी सृष्टि में उथल पुथल मच गई। कुछ लोगो ने संदेह किया की कही ये असमय प्रलय का संकेत तो नहीं है।
यह सभी दृश्य घायल राहु देख रहा था उसके बाद वह भागा भागा देवराज इन्द्र के पास आया और राहु ने इंद्र को सारी बात बताई।
इंद्र का हनुमानजी के पास युद्ध करने आना:- इंद्र को सारा वृत्तांत सुन कर बड़ा क्रोध आया की कोई वानर बालक कैसे सूर्य को निगल सकता है उसे लगा की कही ये किसी राक्षस की तो माया तो नहीं। अतः वह अपने ऐरावत में सवार हो कर सारे अस्त्र-शस्त्रो से सुसज्जित हो कर हनुमानजी के पास पहुँच गया।
इन्द्र और हनुमानजी की वार्ता :- पहले इन्द्र ने हनुमान जी को समझाया की तुम क्यों सूर्य को निगल गए इससे साड़ी सृष्टि का क्रम बदल गया है उसे बहार निकालो। हनुमानजी ने कहा की मुझे भूख लगी थी तो ये लाल लाल फल मुझे अत्याधिक प्रिय लगा तो मै ने इसे खा लिया इसमें क्या बुराई है।
इंद्र हनुमान युद्ध:- इस तरह जब दोनों के बीच संवाद होने के बाद हनुमानजी ने सूर्य को अपने मुख से बहार नहीं निकाला तब इंद्र ने हनुमानजी पर अपने अस्त्र-शस्त्रो का प्रहार प्रारम्भ किया। हनुमानजी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंत में इंद्र ने घबराकर अपने वज्र का प्रहार हनुमानजी के ठुड्डी पर कर दिया। हनुमान जी ने फिर सूर्य को अपने मुख से बहार निकाल दिया।
हनुमान नाम क्यों पड़ा:- हनुमानजी वज्र के प्रहार से एक पर्वत पर गिरे जिससे उनकी ठुड्डी टूट गई। ठुड्डी को संस्कृत में हनु कहते है अतः उस दिन से उन्हें हनुमान नाम से पुकारा जाने लगा।
पवन देव का क्रोध:- फिर जब पवन देव को यह बात पता चली की उनके अंश हनुमान पर इंद्र ने वज्र का प्रहार किया है और हनुमान मुर्क्षित हो गए है तो पवन देव ने अपनी गति रोक ली और सारी सृष्टि में वायु के बिना त्राहि त्राहि मच गई।
देवताओ और ब्रह्माजी का पवन के पास जाना:- सारे देवता ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे तब ब्रह्माजी ने सारे देवताओ को ले कर हनुमानजी के पास पहुंचे जहाँ पवन देव मूर्छित हनुमानजी को अपनी गोद में लिए शोक में बैठे थे।
पवन देव के क्रोध की शांति:- ब्रह्माजी ने हनुमान को स्वस्थ किया और पवन देव से कहा की अब तुम भी वायु का प्रवाह प्रारम्भ करो। अपने अंश हनुमान को पुनः स्वस्थ देख कर पवन देव का क्रोध शांत हुआ और पवन देव ने ब्रह्माजी की बात मान ली और बहना प्रारम्भ कर दिया। जिससे सृष्टि में पुनः जीवन चक्र प्रारम्भ हो सका।
हनुमानजी को देवताओ का आशीर्वाद:- उसके बाद ब्रह्मा जी ने हनुमान को किसी भी अस्त्र-शास्त्र से हानि नहीं पहुचने का वरदान दिया। इंद्र ने उनके शरीर को वज्र से भी कठोर होने का आशीर्वाद दिया। यमराज ने स्वस्थ रहने का आशीर्वाद दिया। सूर्य ने उन्हें ज्ञान और बुद्धि से परिपूर्ण होने का वरदान दिया। वरुण ने पाश और जल से हानि नहीं होने का आशीर्वाद दिया। इसी तरह अन्य सभी देवी देवताओ ने भी हनुमानजी को आशीर्वाद दिए।
आगे चल कर सूर्य भगवान् से ही हनुमान जी ने सारी विद्याएँ ग्रहण की और उन्हें अपना गुरु बनाया। बाल्यावस्था में ही हनुमानजी ने अपने इस अद्भुत बल और पराक्रम से सभी देवी-देवताओ को अचंभित कर दिया था। बोलो हनुमान की जय ! पवनसुत हनुमान की जय ! बोलो बजरंगबली की जय !
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आपको ये कथा कैसी लगी हमे कमेंट में अवश्य बताये !!
Very nice post.
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