बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम ।
राम प्रिया किरपा करें सुमिरौं आठों याम् । ।
कीरति गाथा जो पढ़े सुधरै सगरे काम ।
मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम । ।
॥ चौपाई ॥
राम प्रिया रघुपति रघुराई , बैदेही की कीरत गाई ।
चरण कमल बन्दों सिर नाई , सिय सुरसरि सब पाप नसाई ।
जनक दुलारी राघव प्यारी , भरत लखन शत्रुहन वारी ।
दिव्य धरा सों उपजी सीता , मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता । ।
सिया रूप भायो मनवा अति , रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ।
भारी शिव धुन खींचै जोई , सिय जयमाल साजिहैं सोई ।
भूपति नरपति रावण संगा , नाहिं करि सके शिव धनु भंगा । ।
जनक निराश भए लखि कारन , जनम्यो नाहिं अवनिमोहिं तारन ।
यह सुन विश्वामित्र मुस्काए , राम लखन मुनि सीस नवाए ।
आज्ञा पाई उठे रघुराई , इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ।
जनक सुता गौरी सिर नावा , राम रूप उनके हिय भावा ।
मारत पलक राम कर धनु लै , खंड - खंड करि पटकिन भू पै ।
जय जयकार हुई अति भारी , आनन्दित भए सबै नर नारी ।
सिय चली जयमाल सम्हाले , मुदित होय ग्रीवा में डाले ।
मंगल बाज बजे चहुं ओरा , परे राम संग सिवा के फेरा ।
लौटि बरात अवधपुर आई , तीनों मातु करें नोंराई ।
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा , मातु सुमित्रा गोदहिं लीन्हा ।
कोशल्या सुत भेट दियो सिय , हरख अपार हुए सीता हिय ।
सब विधि दशरथ बांटी बधाई , राजतिलक कै युक्ति सुनाई ।
मंद मती मंथरा अड़ाइन , राम न भरत राजपद पाइन ।
कैकेई कोप भवन मां गइली , वचन पति सों अपनेई गहिली ।
चौदह बरस कोप बनवासा , भरत राजपद देहि दिलासा ।
आज्ञा मानि चले रघुराई , संग जानकी लछमन भाई ।
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं , मृग मारीचि देखि मन अटकै ।
राम गए माया मृग मारन , रावण साधु बन्यो सिय कारन ।
भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो , लंका जाइ डरावन लाग्यो ।
राम वियोग सों सिय अकुलानी , रावण सों कही कर्कश बानी ।
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी , सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ।
अष्टसिद्धि नवनिधि वर पावा , महावीर सिय शीश नवावा ।
सेतु बांधि प्रभु लंका जीती , भक्त विभीषण सों करि प्रीती ।
चढ़ि विमान सिय रघुपति आए , भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ।
अवध नरेश पाइ राघव से , सिय महारानी देखि हिय हुलसे ।
रजक बोल सुनि सिय बन भेजी , लखनलाल प्रभु बात सहेजी ।
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो , लवकुश जन्म वहा पै लीन्हो ।
विविध भांति गुण शिक्षा दीन्हीं , दोनुह रामचरित रट लीन्ही ।
लरिकन कै सुनि सुमधुर बानी , रामसिया सुत दुई पहिचानी ।
भूलमानि सिय वापस लाए , राम जानकी सबहि सुहाए ।
सती प्रमाणिकता केहि कारन , बसुन्धरा सिय के हिय धारन ।
अवनि सुता अवनी माँ सोई , राम जानकी यही विधि खोई ।
पतिव्रता मर्यादित माता , सीता सती नवावों माथा ।
। । दोहा । ।
जनकसुता अवनीधिया राम प्रिया लवमात ।
चरणकमल जेहि उर बसै सीता सुमिरै प्रात । ।
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