श्री खाटू श्याम चालीसा - १
। । दोहा । ।
श्री गुरु चरण ध्यान धर , सुमिर सच्चिदानन्द ।
श्याम चालीसा भणत हूँ , रच चौपाई छंद ।
॥ चौपाई ॥
श्याम श्याम भजि बारम्बारा , सहज ही हो भवसागर पारा ।
इन सम देव न दूजा कोई , दीन दयालु न दाता होई ।
भीमसुपुत्र अहिलवती जाया , कहीं भीम का पौत्र कहाया ।
यह सब कथा सही कल्पान्तर , तनिक न मानों इसमें अन्तर ।
बर्बरीक विष्णु अवतारा , भक्तन हेतु मनुज तनु धारा ।
वसुदेव देवकी प्यारे , यशुमति मैया नन्द दुलारे ।
मधसूदन गोपाल मुरारी , बृजकिशोर गोवर्धन धारी ।
सियाराम श्री हरि गोविन्दा , दीनपाल श्री बाल मुकन्दा । ।
दामोदर रणछोड़ बिहारी , नार्थ द्वारिकाधीश खरारी । ।
नरहरि रूप प्रहलाद प्यारा , खम्भ फारि हिरनाकुश मारा ।
राधा वल्लभ रुक्मिणी कंता , गोपी वल्लभ कंस हंनता ।
मनमोहन चित्तचोर कहाये , माखन चोरि चोरि कर खाये ।
मुरलीधर यदुपति घनश्याम , कृष्ण पतितपावन अभिरामा ।
मायापति लक्ष्मीपति ईसा , पुरुषोत्तम केशव जगदीश ।
विश्वपति त्रिभुवन उजियारा , दीन बन्धु भक्तन रखवारा ।
प्रभु का भेद कोई न पाया , शेष महेश थके मुनिराया ।
नारद शारद ऋषि योगिन्दर , श्याम श्याम सब रटत निरन्तर
कवि कोविद करि सके न गिनन्ता , नाम अपार अथाह अनन्ता ।
हर सृष्टि हर युग में भाई, ले अवतार भक्त सुखदाई !!
हृदय माँहि करि देखु विचारा , श्याम भजे तो हो निस्तारा ।
कीर पढ़ावत गणिका तारी , भीलनी की भक्ति बलिहारी ।
सती अहिल्या गौतम नारी , भई श्रापवश शिला दुखारी ।
श्याम चरण रज नित लाई , पहुँची पतिलोक में जाई ।
अजामिल अरू सदन कसाई , नाम प्रताप परम गति पाई ।
जाके श्याम नाम अधारा , सुख लहहि दु : ख दूर हो सारा ।
श्याम सुलोचन है अति सुन्दर , मोर मुकुट सिर तन पीताम्बर ।
गल वैजयन्तिमाल सुहाई , छवि अनूप भक्तन मन भाई ।
श्याम श्याम सुमिरहु दिनराती , शाम दुपहरि अरू परभाती ।
' श्याम सारथी जिसके रथ के , रोड़े दूर होय उस पथ के ।
श्याम भक्त न कहीं पर हारा , भीर परी तब श्याम पुकारा ।
रसना श्याम नाम रस पी ले , जी ले श्याम नाम के हाले ।
संसारी सुख भोग मिलेगा , अन्त श्याम सुख योग मिलेगा ।
श्याम प्रभु हैं तन के काले , मन के गोरे भोले भाले ।
श्याम संत भक्तन हितकारी , रोग दोष अघ नाशै भारी ।
प्रेम सहित जे नाम पुकारा , भक्त लगत श्याम को प्यारा ।
खाटू में है मथुरा वासी , पार ब्रह्म पूरण अविनासी ।
सुधा तान भरि मुरली बजाई , चहुं दिशि नाना जहाँ सुनि पाई ।
वृद्ध बाल जेते नारी नर , मुग्ध भये सुनि वंशी के स्वर ।
दौड़ दौड़ पहुँचे सब जाई , खाटू में जहां श्याम कन्हाई ।
जिसने श्याम स्वरूप निहारा , भव भय से पाया छुटकारा ।
। । दोहा । ।
श्याय सलोने साँवरे , बर्बरीक तनु धार ।
इच्छा पूर्ण भक्त की , करो न लाओ बार । ।
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श्री खाटू श्याम चालीसा - २
जय हो सुंदर श्याम हमारे , मोर मुकुट मणिमय हो धारे ।
कानन के कुण्डल मोहे ,पीत वस्त्र क
हत दुद माला , साँवरी सूरत भुजा विशाला । ।
न ही दोन लोक के स्वामी , घट घट के हो अंतरयामी ।
पद्मनाभ विष्णु अवतारी , अखिल भुवन के तुम रखवारी । ।
खाटू में प्रभु आप विराजे , दर्शन करते सकल दुःख भाजे ।
इत सिंहासन आय सोहते , ऊपर कलशा स्वर्ण मोहते ।
अगद अनट अच्युत जगदा , माधव सुर नर सुरपति ईशा ।
बाजत नौबत शंख नगारे , घंटा झालर अति इनकारे ।
माखन मिश्री भोग लगावे , नित्य पुजारी चंवर लावे ।
जय जय कार होत सब भारी , दुःख बिसरत सारे नर नारी ।
जो कोई तुमको मन से ध्याता , मन वांछित फल वो नर पाता ।
जन मन गण अधिनायक तुम हो , मधुमय अमृत वाणी तुम हो ।
विद्या के भण्डार तुम्ही हो , सब ग्रंथन के सार तुम्ही हो ।
आदि और अनादि तुम हो , कविजन की कविता में तुम हो ।
नील गगन की ज्योति तुम हो , सूरज चाँद सितारे तुम हो ।
तुम हो एक अरु नाम अपारा , कण कण में तुमरा विस्तारा । ।
भक्तों के भगवान तुम्हीं हो , निर्बल के बलवान तुम्ही हो ।
तुम हो श्याम दया के सागर , तुम हो अनंत गुणों के सागर । ।
मन दृढ़ राखि तुम्हें जो ध्यावे , सकल पदारथ वो नर पावे । ।
तुम हो प्रिय भक्तों के प्यारे , दीन दुःखी जन के रखवारे ।
पुत्रहीन जो तुम्हें मनावे , निश्चय ही वो नर सुत पावे ।
जय जय जय श्री श्याम बिहारी , मैं जाऊँ तुम पर बलिहारी ।
जनम मरण सों मुक्ति दीजे , चरण शरण मुझको रख लीजे । ।
प्रातः उठ जो तुम्हें मनावें , चार पदारथ वो नर पावें ।
तुमने अधम अनेकों तारे , मेरे तो प्रभु तुम्ही सहारे ।
मैं हूँ चाकर श्याम तुम्हारा , दे दो मुझको तनिक सहारा ।
कोढ़ी जन आवत जो द्वारे , मिटे कोढ़ भागत दु : ख सारे ।
नयनहीन तुम्हारे ढिंग आवे , पल में ज्योति मिले सुख पावे ।
मैं मूरख अति ही खल कामी , तुम जानत सब अंतरयामी ।
एक बार प्रभु दरसन दीजे , यही कामना पूरण कीजे ।
जब जब जनम प्रभु मैं पाऊँ , तब चरणों की भक्ति पाऊँ । ।
मैं सेवक तुम स्वामी मेरे , तुम हो पिता पुत्र हम तेरे ।
मुझको पावन भक्ति दीजे , क्षमा भूल सब मेरी कीजे ।
पढ़े श्याम चालीसा जोई , अंतर में सुख पावे सोई । ।
सात पाठ जो इसका करता , अन्न धन से भंडार है भरता ।
जो चालीसा नित्य सुनावे , भूत पिशाच निकट नहिं आवे । ।
सहस्र बार जो इसको गावहि , निश्चय वो नर मुक्ति पावहि । ।
किसी रूप में तुमको ध्यावे , मन चीते फल वो नर पावे । । ‘
नन्द ' बसो हिरदय प्रभु मेरे , राखो लाज शरण मैं तेरे । ।
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Sawariya
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