॥ दोहा ॥
जय जय सीताराम के मध्यवासिनी अम्ब ।
देहु दर्श जगदम्ब अब करो न मातु विलम्ब । ।
जय तारा जय कालिका जय दश विद्या वृन्द । ।
काली चालीसा रचत एक सिद्धि कवि हिन्द ।
प्रातः काल उठ जो पढ़े , दुपहरिया या शाम । ।
दु : ख दारिद्रता दूर हों सिद्धि होय सब काम । ।
॥ चौपाई ॥
जय काली कंकाल मालिनी , जय मंगला महा कपालिनी ।
रक्तबीज बधकारिणि माता , सदा भक्त जनन की सुखदाता ।
शिरो मालिका भूषित अंगे , जय काली जय मद्य मतंगे ।
हर हृदयारविन्द सुविलासिनि , जय जगदम्बा सकल दुःख नाशिनि । ।
ह्रीं काली श्री महाकाली , क्रीं कल्याणी दक्षिणाकाली ।
जय कलावती जय विद्यावती , जय तारा सुन्दरी महामति ।
देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट , होहु भक्त के आगे परगट ।
जय ॐकारे जय हुंकारे , महा शक्ति जय अपरम्पारे ।
कमला कलियुग दर्प विनाशिनी , सदा भक्त जन के भयनाशिनी । ।
अब जगदम्ब न देर लगावहु , दुख दरिद्रता मोर हटावहु ।
जयति कराल कालिका माता , कालानल समान द्युतिगाता ।
जयशंकरी सुरेशि सनातनि , कोटि सिद्धि कवि मातु पुरातनि । ।
कपर्दिनी कलि कल्प विमोचनि , जय विकसित नव नलिनविलोचनि । ।
आनन्द करणि आनन्द निधाना , देहुमातु मोहि निर्मल ज्ञाना । ।
करुणामृत सागर कृपामयी , होहु दुष्ट जन पर अब निर्दयी ।
सकल जीव तोहि परम पियारा , सकल विश्व तोरे आधारा ।
प्रलय काल में नर्तन कारिणि , जय जननी सब जग की पालनि ।
महोदरी महेश्वरी माया , हिमगिरि सुता विश्व की छाया ।
स्वछन्द रद मारद धुनि माही , गर्जत तुम्ही और कोउ नाही ।
स्फुरति मणिगणाकार प्रताने , तारागण तू ब्योम विताने । ।
श्री धारे सन्तन हितकारिणी , अग्नि पाणि अति दुष्ट विदारिणि ।
धूम्र विलोचनि प्राण विमोचनि , शुम्भ निशुम्भ मथनि वरलोचनि ।
सहस भुजी सरोरुह मालिनी , चामुण्डे मरघट की वासिनी ।
खप्पर मध्य सुशोणित , साजी , मारेहु माँ महिषासुर पाजी ।
अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका , सब एके तुम आदि कालिका ।
अजा एकरूपा बहुरूपा , अकथ चरित्र तव शक्ति अनूपा ।
कलकत्ता के दक्षिण द्वारे , मूरति तोर महेशि अपारे ।
कादम्बरी पानरत श्यामा , जय मातंगी काम के धामा ।
कमलासन वासिनी कमलायनि ,जय श्यामा जय जय श्यामायनि । ।
मातंगी जय जयति प्रकृति हे , जयति भक्ति उर कुमति सुमति है ।
कोटिब्रह्म शिव विष्णु कामदा , जयति अहिंसा धर्म जन्मदा
जल थल नभमण्डल में व्यापिनी , सौदामिनि मध्य अलापिनि ।
झननन तच्छु मरिरिन नादिनि , जय सरस्वती वीणा वादिनी ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे , कलित कण्ठ शोभित नरमुण्डा ।
जय ब्रह्माण्ड सिद्धि कवि माता , कामाख्या और काली माता ।
हिंगलाज विन्ध्याचल वातिनि , अट्टहासिनी अरु अघन नाशिनी ।
कितनी स्तुति करूँ अखण्डे , तू ब्रह्माण्डे शक्तिजितचण्डे ।
करहु कृपा सब पे जगदम्बा , रहहिं निशंक तोर अवलम्बा ।
चतुर्भुजी काली तुम श्यामा , रूप तुम्हार महा अभिरामा ।
कर सोहत , सुर नर मुनि सबको मन मोहत । । हो । शोक नहिं ताकहँ होई ।
खड्ग और खप्पर कर सोहत , सुर नर मुनि सबको मन मोहत ।
कृपा पावे जो कोई , रोग शोक नहिं ताकहँ होई । ।
जो यह पाठ करे चालीसा , तापर कृपा करहि गौरीशा । ।
। । दोहा । ।
जय कपालिनी जय शिवा , जय जय जय जगदम्ब ।
सदा भक्तजन केरि दुःख , हरहु मातु अवलम्ब ॥
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