ईश्वर ने मनुष्य को सबसे ज्यादा विवेकशील प्राणी बनाकर इसलिए भेजा ताकि उन्हें आशा थी कि मनुष्य अपने विवेक के प्रयोग से ईश्वर के भावों को अच्छे से समझकर उसपर चले। संसार के प्रत्येक प्राणी को परमात्मा का अंश मानकर उसके साथ उचित व्यवहार करे। अपने हृदय में प्रेम, करूणा और धर्म को स्थान देकर परम आनंद को प्राप्त करे जो उसे मुक्ति का मार्ग दिखाए विवेक का प्रयोग हम वैसे नहीं कर रहे जो प्रभु की इच्छा है !! हमने गलत व्याख्या कर ली कि चाहे तमाम पाप कर ले लेकिन पूजा-पाठ या दान से तो सब पापों से मुक्ति हो जाएगी यह कुछ और नहीं बल्कि नदी के छोरों के पास आने की प्रतीक्षा जैसा है। अगर आप को कहानी पसंद आये तो आपने करीबियों को अवश्य सुनाये
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