एक कम्पनी को एक योग्य व्यक्ति की तलाश थी। इसके लिए अखबारों में विज्ञापन दिया गया। पचास लोग साक्षात्कार देने आए। साक्षात्कार लेने के लिए खुद कंपनी का मालिक अपने एक मित्र के साथ बैठा। साक्षात्कार के बाद उस पद के लिए एक ऐसे व्यक्ति का चयन कंपनी के मालिक ने किया जो दिखने में बिलकुल सामान्य था। उसके पास कोई अतिरिक्त योग्यता भी नहीं थी।
मालिक के मित्र ने उससे पूछा-'साक्षात्कार के लिए यहां बड़ी-बड़ी डिग्रियां और सिफारिशें लेकर लोग आए, तुमने सबको खारिज कर दिया। लेकिन तुमने एक ऐसे व्यक्ति को क्यों चुना, जिसके पास न तो कोई खास योग्यता है और न ही वह कोई सिफारिशी खत लाया था। किसी ने उसके पक्ष में कुछ कहा भी नहीं है।' इस पर मालिक ने कहा-'तुम गलत समझ रहे हो। कई बातों ने उसकी खूब सिफारिश की है।
जब वह साक्षात्कार के लिए आया तो उसने डोरमैट पर अपने जूते रगड़े, फिर कमरे में दाखिल हुआ। उसने दरवाजा धीमे-से बंद किया। इससे पता चला कि वह कितना सलीकेदार है। वह साक्षात्कार देने आए एक विकलांग प्रत्याशी के लिए फौरन अपनी सीट छोड़ उठ खड़ा हुआ। जाहिर है, वह दूसरों का खयाल रखने वाला है। फर्श पर पड़ी पुस्तक को उसने सावधानी से उठाया और मेरी मेज पर रखा, जबकि दूसरे लोग इसके प्रति लापरवाह बने रहे।
मैंने देखा कि उसके कपड़े साफ-सुथरे थे और उसका सद्व्यवहार और ये आदतें हजारों सिफारिशी खतों पर भारी हैं। मैं किसी को दस मिनट सावधानीपूर्वक देखकर उसके चरित्र को पहचान सकता हूं। कोई भी सिफारिशी खत उसके विषय में इतना स्पष्ट नहीं कर सकता।' मनुष्य की श्रेष्ठता उसके व्यवहार से अपने आप प्रकट होती रहती है। हमारी आदतें ही हमारी आंतरिक श्रेष्ठता स्पष्ट करती हैं।
व्यवहार ज्ञान की पहली सीढ़ी है। व्यवहार आपका अच्छा नही तो कोई ज्ञान स्थायी रूप से काम नही आ सकता
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