शिवि की धर्मपरायणता, उदराता, दयालुता एवं परोपकार की ख्याति स्वर्गलोक में भी पहुंच गई थी। इन्द्र और अग्निदेव शिवि की प्रशंसा सुनने के बाद उनकी परीक्षा की योजना बनायी राजा शिवि के गुणों को परखने के लिए अग्निदेव कबूतर बने और इन्द्र बाज। एक दिन राजा अपने दरबार में बैठे थे तभी एक कबूतर उड़ता हुआ उनकी गोद में आ गिरा और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा कबूतर ने कहा… महाराज आपकी उदारता और शरणागत पर दया की चर्चा पशु-पक्षियों तक में होती है मैं भी आपके राज्य में निवास करने के कारण आपकी प्रजा और अभी आपका शरणागत हूं। मेरी रक्षा करें। शिवि ने कबूतर को निश्चिंत रहने का वचन दिया और कहा कि वह उसकी रक्षा हर हाल में करेंगे। राजा ने जैसे ही वचन दिया तभी वहाँ एक बाज आ पहुंचा और शिवि से कबूतर को वापस करने की मांग करने लगा। बाज ने कहा… महाराज यह कबूतर मेरा आहार है मैं अपने आहार का पीछा कर रहा था मैंने इस पर प्रहार भी किए है, आप मुझे मेरा आहार वापस करें। आपकी बड़ी कृपा होगी। राजा शिवि ने कहा… बाज यह तुम्हारा आहार रहा होगा किंतु अभी यह मेरा शरणागत है और मैंने इसको प्राण रक्षा का वचन दिया है। इसलिए मैं अपना वचन भंग नही कर सकता। बाज ने कहा… महाराज मैं भी आपके राज्य का रहने वाला पक्षी हूं। विधाता ने मुझे शिकार करके अपना पेट भरने की व्यवस्था दी है अगर आप कबूतर वापस नहीं करेंगे तो आपको मुझे भूखा रखने का पाप लगेगा। जो राजा अपनी प्रजा को किसी कारण कष्ट देता है या उसके आहार का हरण करता है उस राजा पर से देवों की कृपा समाप्त हो जाती है उसकी प्रजा को इसका दंड भोगना पड़ता है आप यह पाप न करें। शिवि ने कहा… तुम्हारी बातें सत्य है किंतु मैं वचनबद्ध हूँ। शरणागत का अतीत मुझे ज्ञात नहीं था इसलिए मैंने इसकी रक्षा का भार लिया है इसके बदले मैं तुम्हें अन्य मास का प्रबंध करा सकता हूँ। बाज बोला… आप न्यायप्रिय है मैं आहार प्राप्ति में स्वय समर्थ हूँ इसका प्रमाण आपकी गोद में बैठा कबूतर है । जो राजा अपनी प्रजा को आलसी और राजकीय पर आधारित बनाता है वह राजा न्यायप्रिय नहीं। राजकोष आपकी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं प्रजा का अधिकार है बाज की तर्कपूर्ण बातों से शिवि निरूत्तर होने लगे उन्होंने कहा… बाज राजकोष मेरी संपत्ति नहीं किंतु प्रजा कल्याण में प्रयोग का अधिकार है कबूतर मेरी प्रजा है उसके कल्याण के लिए प्रयोग का अधिकार है बाज और शिवि में तर्क-वित्तक चलता रहा शिवि बाज के तर्कों के आगे झुक गए और उन्होंने बाज से ही रास्ता बताने का अनुरोध किया। बाज ने कहा… आप राजा है मैं प्रजा, प्रजा को संतोषजनक पारितोषिक दीजिए। शिवि ने कहा… हर व्यक्ति को सबसे प्रिय उसके अपने शरीर का मांस होता है मैं कबूतर के बदले अपने शरीर से मांस काटकर दे सकता हूँ , बाज इस पर सहमत हो गया। एक बड़े से तराजू एक पलड़े पर कबूतर को रखा गया और दूसरे पर राजा शिवि ने अपनी जंघा से काटकर मांस का एक बड़ा टुकड़ा रखा लेकिन पलड़ा हिला भी नहीं, शिवि अपने शरीर से मांस काटकर रखते गए लेकिन पलड़ा नहीं हिला।
अंत में खून से लथपथ शिवि स्वयं उस तराजू पर बैठ गए। उनके बैठते ही पलड़ा झुक गया आकाश से फुलों की वर्षा होने लगी इंद्र और अग्नि अपने वास्तिवक रूप में आ गए। इंद्र ने शिवि का शरीर पहले जैसा कर दिया। इंद्र ने कहा… राजा शिवि आपकी दानशीलता अद्भुत है एक शरणागत पक्षी को दिए अभयदान के बदले में आपने अपना शरीर समर्पित कर दिया , आपकी कीर्ति संसार में तब तक बनी रहेगी जब तक यह पृथ्वी और आकाश अपने स्थान पर है ! अग्नि ने वर दिया… मेरी प्रचण्डता न आपको विचलित करेगी और न आपका अहित करेगी। देवता शिवि को वरदान देकर स्वर्गलोक चले गए। अपने वचन पर अडिग रहने और दूसरों के प्रति दया प्रदर्शित करने की भावना से इंसान चाहे देवताओं को भी वश में कर सकता है।
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