कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है एक तपस्वी ने आम का बगीचा लगाने का विचार किया अपनी कुटिया के आस पास। वह गाँव में गया और लोगों से आम की कुछ कलमें मांगी। लोगों ने कहा कि आप तो तपस्वी हैं आपको तो बबूल को भी अपने प्रेम से आम का पेड़ बना सकते हैं। तपस्वी सोच में पड़ गया तभी किसी विलायती पढ़ाई करके आये व्यक्ति ने एक अंग्रेजी का श्लोक सुनाया , ” Change your thoughts and you change your world.” तपस्वी को बात जंच गयी और वह बबूल के पौधे भी ले आया। दोनों ही तरह के पेड़ों के साथ समान भाव से देखभाल करने लगा। जब पेड़ बड़े हुए तो आम तो आम ही रहे और बबूल बबूल ही रहे। तपस्वी को बहुत दुःख हुआ कि उनकी दिन रात की मेहनत व प्रेम भी बबूल को आम नहीं बना सकी वह भी एक ही बगीचे में रहने के बाद भी। उस दिन से तपस्वी ने जाना कि इंसान भी पेड़ों की तरह ही होता है उनमे भी भिन्न प्रकार की प्रजातियां होती हैं। सभी इंसान अच्छे नहीं बन सकते और सभी बुरे नहीं हो सकते फिर चाहे सभी को एक ही परिवेश व प्रेम क्यों न मिले। गुरु के सान्निध्य में भी कोई अर्जुन कोई दुर्योधन बन जाता है और कोई बियाबान में भी एकलव्य बन जाता है। तपस्वी ने अपनी डायरी में लिखा; “यह भ्रम है कि कोई किसी को सुधार सकता है या बदल सकता हैं। व्यक्ति जो कुछ भी बनता है वह अपने पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण ही बनता है। वह अपने संस्कारों के अनुरूप ही अपना आदर्श चुनता है और उसी के अनुसार वह अच्छे या बुरे कर्म करता है। हम केवल किसी को जाग्रत होने में सहयोग कर सकते हैं और वह भी तब जब वह स्वयं चेस्टारत हो अन्यथा नहीं। और जागृत व्यक्ति ही इस योग्य हो सकता है कि पूर्वजन्मों को कुससकारों से अपने विवेक व संकल्प शक्ति से मुक्त हो सके।
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