स्कूल से दसवी कक्षा की थी जिसके कारण उसे सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया ! शहरो में माता-पिता सरकारी स्कूल की व्यवस्था देखकर खुद को कष्ट में डालकर ही सही पर अपने बच्चो को महंगी शिक्षा मुहैय्या कराते है ताकि उनके बच्चे आगामी जीवन सुखमय पूर्ण व्यतीत कर सके ! यही सोचकर महेश के माता-पिता ने बचपन से लेकर दसवीं तक मध्यम वर्गीय स्कूल में महेश को पढ़वाया और अंक अच्छे आने के कारण उसका दाखिला आसानी से सरकारी स्कूल में हो गया !
सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल में जमीन आसमान का अंतर था ! प्राइवेट स्कूल में एक तरफ प्रिंसिपल मैम राउंड पर रहकर देखती थी कि कौन टीचर क्या पढ़ा रही है और बच्चे कितना पढ़ रहे है !! हालाँकि प्राइवेट स्कूल में मैम य सर जो भी होते थे , खाली नही बैठ सकते थे क्योंकि प्रिंसिपल की डांट और नौकरी से निकाले जाने का खतरा जो था !! दूसरी तरफ सरकारी स्कूल में य तो टीचर आकर मन से पढ़ाते थे या फिर मन से बंक मारते थे और बच्चे यानि छात्रगण भी उसी के अनुरूप उनका देखा देखी करते !! वो भी उन टीचरो से य तो मन से पढ़ते य फिर मन से बंक मारते !! प्राइवेट में अंग्रेजी में अटेंडेंस खड़े होकर और सरकारी में धूप में बैठकर हाजिरी देना !! बच्चों के लाइन में लंच लेना या बच्चो से लंच अपने लिए भी मंगवाना ये कुछ सीनियर छात्र का रोज का पेशा लगभग होता था !!
एक प्रेरणादायक कहानी - हिम्मत न हारिये !
एक प्रेरणादायक कहानी- पाप की कमाई का धन कभी समृद्धि नही देता !!
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तभी बस ड्राईवर बढ़े नरमी से बोलने लगा, जाओ पीछे जाओ बेटा ! बस ड्राईवर जरुर शर्मिंदा हुआ होगा पर निश्चित तौर पर महेश जितना नही ! उसके बाद महेश आज तक स्कूल जाने के लिए डीटीसी बस में अकेले सफर नही करता है !!
शिक्षा - ये स्वाभाविक है की ड्राईवर सरकारी स्कूल की पोशाक के कारण ही महेश को भी फ्री में सफर करने वाला यात्री समझ बैठा लेकिन हमे समझना चाहिए कि संसार में हर तरह के प्राणी है जो स्वाभिमान से जीवन जीना पसंद करते है !! इसीलिए विनम्रता और धैर्य के साथ ही किसी के व्यक्तित्व को जांचना-परखना चाहिए !!
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