एक प्रेरणादायक कविता - रिश्ते | Inspirational Poem | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

एक प्रेरणादायक कविता - रिश्ते | Inspirational Poem | Gyansagar ( ज्ञानसागर ) 


"रिश्ते"


कितने ख़ूबसूरत होते है यह रिश्ते
कही से सुनाई दे जाए यह ध्वनि,
मानो जो अभी रिक्त था
वो भर गया हो उस ध्वनि से,
शायद तुमने भी सुनी हो वो ध्वनि
मगर गौर करने का वक़्त न हो
आज पड़ी एक ध्वनि मेरे कानो में
वो सात साल का मासूम चेहरा
चार साल की मासूमियत से
बड़ी बहन को मारते है ?

उन शब्द में रोष था मगर स्नेह से परिपूर्ण
हाथ उठा मारने को मगर रुक गया सुदूर,
ऐसे अनेको रिश्ते हम निभाते है
जीवन की यात्रा में
क्या ईमानदारी रख पाते है ?

हम उस उम्र की दहलीज में
जिस पर जलती है चिताएं बचपन की
वहाँ अक्सर झुलस जाते है वो रिश्ते
जो माँ-बाप ने दिये थे हमें
जो उपजे थे इंसानियत से
कोई गठरी थी,न दिखाई देने वाली
शायद रिश्ते नाम थे उनके
मैं भी दूँगा वो गठरी अपने बच्चो को
मगर वो अब झुलसी होगी
चीख़ती हुई आवाज़ होगी उसकी
 शायद ही कोई सुन सके ?

क्योकिं अब कोई गठरी बांधना नही चाहता...
मैं तो बिल्कुल नही ।
क्या तुम बाँधोगे वो गठरी ???

रिश्तो की !
जो अब झुलस गए है।।
कितने ख़ूबसूरत होते थे रिश्ते न ??

कवि - विवेक राहगीर



*सारांश*  


रिश्ते एक ऐसा शब्द है जो आता है तो कई यादों को ले आता है। आज के समय में यह शब्द अपनी अहमियत खो रहा है या यूँ कहे की इसकी कद्र करना या इसकी परवा करना हम छोड़ रहे है। उसी को लेकर कुछ लिखने की कोशिश है। जब हम बच्चे होते है तो हम में वो शुद्धता रहती है वो मासूमियत होती है मगर जब हम उस मासूमियत से निकल कर जवानी में जा रहे होते है जो की सब जाते है और यह एक प्राकृतिक क्रिया है उसके पश्चात् हम अपनी मासूमियत खो देते है वहाँ हमारे रिश्तो का क्षय हो जाता है उनकी ताकत खत्म हो जाती है। क्यों? क्योकिं हम रिश्तो को तबज़्ज़ो देना छोड़ देते है। यह अभी पिछले 20 सालों में बहुत तेज़ी से बड़ा है और अभी तो यह स्थिति हो चली है कि लोगो को ख़ुद के अलावा किसी के मतलब नही रहा है। लोग धड़ल्ले से किसी की भावनाओं की फ़िक्र किये बिना अपना काम निकाल रहे है। अब कितनी विकृति की मानसिकता आज हम हर रोज़ अखबारों, न्यूज़ चैनल्स पर देख रहे है। कितना भयावह है यह की अब बच्ची को बच्ची की नज़र से नही देखा जा रहा है। सवाल यह उठता है कि यह कैसे रुके ? अगर सभी ऐसे हो गए है तो अच्छा कौन है ? अगर अच्छे है तो वो कुछ नही कर रहे क्या? तो इसके जवाब में एक और सवाल खड़ा हो जाता है कि वो अच्छे-बुरे लोग कौन है ? इसका जवाब यह है कि वो अच्छे-बुरे लोग हम ही है। हम ही है जो इस मानसिकता यह स्थिति से निपट सकते है लड़ सकते है। बस ज़रूरत है एकत्रित होने की और यह बोलने की हम ही है जो यह कर सकते है। बात यह है कि आप बस अपने रिश्ते अपने अपनी इंसानियत को ज़िंदा रखो यह खुद व खुद ठीक होने लगेगा। इसके लिए हमे किसी और क पास नही जाना है कि आप अच्छे बन जाइये। क्योकि सब अपनी नज़र में अच्छे है और सब की अपनी परिभाषा है अच्छे होने की। हम सब को स्वयं को देखना है। आत्म अवलोकन करना है। बस यही सार है इस कविता का। क्योकिं  हम खुद ऐसे रहेंगे तो अपने बच्चो को क्या देंगे जब हमारे पास के ही रिश्ते झुलसे हुए है। बाकी आप कविता पड़े तो अब आपके लिए यह एक चिंतन का विषय हो सकती है।


हम दिल से आभारी है विवेक राहगीर जी के प्रेरणादायक कविता साझा करने के लिए !!

पोस्ट पसंद आयी हो तो लाइक 👍,कमेंट व् शेयर 👉 जरूर करे ! 

Saransh Sagar





Post a Comment

Previous Post Next Post