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' कितने ही देवी देवता और इनमें इतनी ही अपार श्रद्धा कि भक्त अपने भगवान पर इतना भरोसा करते हैं कि उनके लिये कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं… जी हां ये है हिन्दुस्तान की धार्मिक संस्कृति जो देश भर के अलग अलग कोनों में अपने अलग अलग रंग लिये हुए हैं और आज धर्म और श्रद्धा के इन्ही रंगों से रूबरू होने के लिये आपको बताते हैं जैसलमेर में भारत पाक सीमा पर बने तनोट माता मंदिर के बारे में जहां पर भारत पाकिस्तान युद्ध से जुड़ी कई अजीबोगरीब यादें जुडी हुई जो देश भर के श्रद्धालुओं को नहीं वरन सेना को अपने आप से जोड़े हुए है और भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के लिये भी यह आस्था का केन्द्र बना हुआ है !
सन 1965 व 71 का वो युद्ध और इस मंदिर की कहानी
देश की पश्चिमी सीमा के निगेहबान जैसलमेर जिले की पाकिस्तान से सटी सीमा बना बना यह तनोट माता का मंदिर अपने आप में अद्भुत मंदिर हैं. सीमा पर बना यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था के केन्द्र के साथ साथ भारत पाक के 65 व 71 के युद्ध का मूक गवाह भी है. ये माता के चमत्कार ही है जो आज इसे श्रद्धालुओं और सेना के दिलों में विशेष स्थान दिलाये हुए है. यह कोई दंत कथा नहीं है और न ही कोई मनगढंत कहानी है, 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की तनोट माता है मां बनकर ही रक्षा करी थी. 65 के युद्ध के दौरान जब शत्रु सेना भारतीय क्षेत्र में काफी अन्दर तक आ गई थी और उस समय इस दुर्गम सीमा क्षेत्र पर सीमित संसाधन होने के कारण भारतीय सेना उनका जवाब देने में कठिनाई महसूस कर रही तनोट माता ने मां बनकर इन सैनिकों की रक्षा की और पाकिस्तानी सेना के हौंसले पस्त करते हुए उन्हें वापिस जाने को मजबूर कर दिया !
तनोट पर आक्रमण से पहले शत्रु सेनाओं ने तीनों दिशाओं से भारतीय सेना को घेर लिया था और उनकी मंशा तनोट पर कब्जा करने की थी क्योकि अगर पाक सेनातनोट पर कब्जा कर लेती तो वह इस क्षेत्र पर अपना दावा कर कर सकती थी इसलिये दोनो ही सेनाओं के लिये तनोट महत्वपूर्ण स्थान बन गया था. बात है 17 से 19 नवम्बर के बीच की जब दुश्मन की जबरदस्त आग उगलती तोपों ने तनोट को तीनों ओर से घेर लिया था और तनोट की रक्षा के लिये भारतीय सेना की कमान संभाले मेजर जयसिंह के पास सीमित संख्या में सैनिक और असला था ! शत्रु सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिये तनोट से जैसलमेर की ओर आने वाले मार्ग में स्थित घंटियाली के आस पास तक एंटी टैंक माईन्स लगा दिये थे ताकि भारतीय सेना की मदद के लिये जैसलमेर के सडक मार्ग से कोई वाहन या टैंक इस ओर न आ सके. इतनी तैयारी और बडे असले के साथ आई पाक सेना का भारतीय सेना के पास मुकाबला करने के लिये अगर कुछ था तो वह था हौसला और तनोतमाता पर विश्वास, और यह उसे विश्वास का ही चमत्कार था कि दुश्मन ने तनोट माता मंदिर के आस पास के क्षेत्र में करीब तीन हजार गोले बरसाये लेकिन इनमें से अधिकांश अपना लक्ष्य चूक गये इतना ही नहीं पाक सेना द्वारा मंदिर को निशाना बना कर करीब 450 गोले बरसाये गये लेकिर माता के चमत्कार से एक भी बम फटा नहीं और मंदिर को खंरोंच तक नहीं आई और फिर माता के इन चमत्कारों से बढे भारतीय सेना के हौंसलों ने पाक सैनिकों वापिस लौटने पर मजबूर कर दिया !
माता के बारे में कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय सैनिक समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे और परिणाम स्वरूप स्वयं पाक सेना द्वारा अपनी सेना का सफाया हो गया. इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं. यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये भी ये आकर्षण का केन्द्र है. 1971 के युद्ध में भी पाक सेना ने किशनगढ पर कब्जे के लिये भयानक हमला किया था परन्तु 65 की ही तरह उन्हें फिर से मुह की खानी पडी. माता की शक्ति को देखकर पाक सेना के कमाण्डर शहनवाज खां ने युद्ध समाप्ति के बाद भारत सरकार से माता के दर्शन की इजाजत मांगी व ढाई वर्ष बाद इजाजत मिलने पर शहनवाज खां ने माता के दर्शन कर यहां छत्र चढाया !
लगभग 1200 साल पुराने तनोट माता के मंदिर के महत्व को देखते हुए बीएसएफ ने यहां अपनी चौकी बनाई है इतना ही नहीं बीएसएफ के जवानों द्वारा अब मंदिर की पूरी देखरेख की जाती है ! मंदिर की सफाई से लेकर पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम अब बीएसएफ बखूबी निभा रही है. वर्ष भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जिनती आस्था इस मंदिर के प्रति है उतनी ही आस्था देश के इन जवानों के प्रति भी है जो यहां देश की सीमाओं के साथ मंदिर की व्यवस्थाओं को भी संभाले हुए है. बीएसएफ ने यहां दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं के लिये विशेष सुविधांए भी जुटा रखी है और मंदिर और श्रद्धालुओं की सेवा का जज्बा यहां जवानों में साफ तौर से देखने को मिलता है. सेना द्वारा यहां पर कई धर्मशालाएं, स्वास्थ्य कैम्प और दर्शनार्थियों के लिये वर्ष पर्यन्त निशुल्क भोजन की व्यवस्था की जाती है. नवरात्रों के दौरान जब दर्शनार्थियों की भीड बढ जाती है तब सेना अपने संसाधन लगा कर यहां आने वाले लोगों को व्यवस्थाएं प्रदान करती है. तनोट माता के प्रति आम लोगों के साथ साथ सैनिकों की भी जबरदस्त आस्था है. श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाओं को लेकर दर्शन करने के लिये आते हैं और अपनी मनोकामनाओं को पूरा होते भी देखते हैं. इस मंदिर में आने वाला हरेक श्रद्धालु अपनी मनोकामना की पूर्ती के लिये यहां रूमाल अवश्य बांधते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ती के बाद इस खोलने के लिये भी आते हैं !
देश भर की विभिन्न शक्ति पीठों के बीच अपनी विशेष पहचान लिये हुए तनोट माता का मंदिर देखने में भले ही एक मंदिर लगता हो लेकिन वास्तव में यह भारत पाक सीमा पर एक प्रहरी की तरह खडा है जिस पर इस क्षेत्र के लोगों को ही नहीं वरन सेना को भी पूरा भरोसा है कि जब तक माता इस क्षेत्र की रक्षा कर रही है तब तक शत्रु लाख कोशिश कर ले हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकता है. 1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है. मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे. सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है. आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है !
तनोट माता मंदिर का इतिहास
बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें। माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की। काँस्टेबल कालिकांत सिन्हा जो तनोट चौकी पर पिछले चार साल से पदस्थ हैं कहते हैं कि माता बहुत शक्तिशाली है और मेरी हर मनोकामना पूर्ण करती है। हमारे सिर पर हमेशा माता की कृपा बनी रहती है। दुश्मन हमारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता है। माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की।
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