ये वास्तव में वो नियम है य ये भी कह सकते है एक अलार्म जिससे हम आध्यत्म से जुड़े रहे ! धर्म कर्म से जुड़े रहे , परमात्मा से जुड़े रहे जैसे भोजन के लिये थाली प्लेट की आवश्यकता होती है वैसे ही पूजा के लिये इन नियम-सामग्री की आवश्यकता है ! भोजन तो जानवर भी करते है पर मनुष्य तरीके से करते है ! सौंदर्यपूर्ण ताकि मनुष्य व जानवर में फर्क दिख सके तो कुछ पत्तल में करते है कुछ हाथ मे इसे अलग धर्म सम्प्रदाय के पूजा के तरीके से समझा जा सकता है !! ये मात्र एक नियम है जो सनातन धर्म को विधिवत परम्परागत रूप से चलाने के लिए एक नियम थी जिसे पूजा,अर्चना का पर्याय मान लिया गया ! पूजा तो वो भूख-प्यास है जो ईश्वर को प्राप्त करने के लिये हो जैसे भुख लगने पर हम सिर्फ भोजन मिलने की चिंता करते है उसी प्रकार सच्चा भक्त,साधक,उपासक सामग्री य नियम से बंधे नही होते है मात्र भक्ति की भुख से वो ईश्वर को पा लेते है !
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