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गाय हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र पशु है। इस धरती पर पहले गायों की कुछ प्रजातियां होती थीं। उससे भी प्रारंभिक काल में एक ही प्रजाति थी। आज से लगभग 9,500 वर्ष पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र मारे गए थे।
दरअसल, भारत एक कृषि-प्रधान देश है। कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्रोत है। ऐसी अवस्था में किसान को ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है। गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है। प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गाएं होती थीं उसको उतना ही संपन्न माना जाता है। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनों की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है। इसके दुष्परिणाम भी झेलने पड़ रहे हैं।
एक समय वह भी था, जब भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था। इसका कारण केवल गाय थी। भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन थे। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। किंतु हरित क्रांति के नाम पर सन् 1960 से 1985 तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया। अब खेत उर्वरा नहीं रहे।
अब खेतों से कैंसर जैसी बीमारियों की उत्पत्ति होती है। रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरा शक्ति को घटाकर इसे बांझ बना दिया। गाय के गोबर में गौमूत्र, नीम, धतूरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है। वर्षों से हमारे भारतीय किसान यही करते आए हैं। आधुनिक विकास के नाम पर अमेरिकी और यूरोपीय लोगों ने हमारी सभ्यता, संस्कृति के साथ ही हमारी धरती को भी नष्ट कर दिया। आम भारतीय तो समझदार होता है लेकिन जिसने विदेशों में पढ़ाई की है उसके भारतीय होने की कोई गारंटी नहीं।
गायों की प्रमुख नस्लें : भारत में आजकल गाय की प्रमुख 28 नस्लें पाई जाती हैं। गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में मुख्यत: साहीवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गिर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं। विदेशी नस्ल में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी अधिक देती है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है।
गाय को पूजने का महत्व
33 कोटि देवता : हिन्दू धर्म अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, प्रकार होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है। हिन्दुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश व उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।
सकारात्मक ऊर्जा का भंडार : वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं। किसी संत में ही उतनी ऊर्जा हो सकती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।
घर के आसपास गाय के होने का मतलब है कि आप सभी तरह के संकटों से दूर रहकर सुख और समृद्धिपूर्वक जीवन जी रहे हैं। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ, सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है।
गाय की सूर्यकेतु नाड़ी : गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। दूसरी ओर, सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।
पंचगव्य : पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग निरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। ऐसा कोई रोग नहीं है जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके।
गाय का दूध व घी अमृत के समान है, वहीं दही हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता साथ ही साथ धी में सैकड़ो फायदे है ! दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते है ,जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते है ! पंचगव्य का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायो से प्राप्त उत्पादों द्वारा ही करनी चाहिए !
स्मरणीय है कि पंचगव्य से लगभग सभी रोगों (कैंसर) तक का इलाज हो जाता है। गुजरात के बलसाड़ नामक स्थान के निकट कैंसर अस्पताल में तीन हजार से अधिक कैंसर रोगियों का इलाज हो चुका है। पंचगव्य के कैंसरनाशक प्रभावों पर यूएस से पेटेंट भारत ने प्राप्त किए हैं। 6 पेटेंट अभी तक गौमूत्र के अनेक प्रभावों पर प्राप्त किए जा चुके हैं।
गाय का आध्यात्मिक रहस्य...
84 लाख योनियों के बाद : शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो आत्मा की विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं। उनमें से गाय भी एक है। इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना ही होता है। हम जितनी भी गाएं देखते हैं, ये 84 लाख योनियों के विकास क्रम में आकर अब अपने अंतिम पड़ाव में विश्राम कर रही हैं। गाय की योनि में होने का अर्थ है- विश्राम, शांति और प्रार्थना।
आप गौर से किसी गाय या बैल की आंखों में देखिए, तो आपको उसकी निर्दोषता अलग ही नजर आएगी। आपको उसमें देवी या देवता के होने का आभास होगा। यदि कोई व्यक्ति गाय का मांस खाता है तो यह निश्चित जान लें कि उसे रेंगने वालों कीड़ों की योनि में जन्म लेना ही होगा। यह शास्त्रोक्त तथ्य है। यदि कुछ या ज्यादा लोग ऐसा पाप करते हैं तो उन्हें फिर से 84 लाख योनियों के क्रम-विकास में यात्रा करना होगी जिसके चलते नई आत्माओं को मनुष्य योनि में आने का मौका मिलता रहता है। मानव योनि बड़ी मुश्किल से मिलती है। बहुत वेटिंग है।
गौमूत्र : गौमूत्र को सबसे उत्तम औषधियों की लिस्ट में शामिल किया गया है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गौमूत्र में पारद और गंधक के तात्विक गुण होते हैं। यदि आप गो-मूत्र का सेवन कर रहे हैं तो प्लीहा और यकृत के रोग नष्ट कर रहे हैं।
* गौमूत्र कैंसर जैसे असाध्य रोगों को भी जड़ से दूर कर सकता है। गोमूत्र चिकित्सा वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय का लीवर 4 भागों में बंटा होता है। इसके अंतिम हिस्से में एक प्रकार का एसिड होता है, जो कैंसर जैसे रोग को जड़ से मिटाने की क्षमता रखता है। गौमूत्र का खाली पेट प्रतिदिन निश्चित मात्रा में सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
* गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लैक्टोज की वृद्धि होती है, जो हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है।
* गौमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फॉस्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, विटामिन ए, बी, डी, ई, एंजाइम, लैक्टोज, सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्राक्साइड आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणुनाशक है। पोटेशियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मैग्नीशियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।
* गौमूत्र में प्रति-ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गौमूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, आर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी संबंधित रोगों का उपचार भी संभव है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है।
* गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी ये सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
* गौमूत्र और गोबर, फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है।
* कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की ऊर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है।
* प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है।
* गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल के मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है।
गाय का दूध जहां आंखों की ज्योति बढ़ाता है वहीं यह शारीरिक विकास के लिए भी लाभदायक है। गाय के दूध में हुए शोधानुसार इसके हजारों फायदों को खोजा गया है। यहां जानिए कुछ प्रमुख लाभ।
गाय का दूध :
* गाय का दूध पीने से शक्ति का संचार होता है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
* हाथ-पांव में जलन होने पर गाय के घी से मालिश करने पर आराम मिलेगा।
* गाय के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है।
* गाय का दूध फैटरहित, परंतु शक्तिशाली होता है। उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है।
* गाय के घी व गोबर से निकलने वाले धुएं से प्रदुषणजनित रोगों से बचा जा सकता है।
* गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं। गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेक बीमारियों से दूर रखता है।
गाय का घी :
* ऐसी मान्यता है कि काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है।
* घी से हवन करने पर लगभग 1 टन ताजे ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक समारोहों में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है।
* गाय का घी नाक में डालने से बाल झड़ना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते हैं। गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
* देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
* दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह-शाम डालने से माइग्रेन दर्द ठीक होता है
गाय का रंग :
* सफेद रंग की गाय का दूध पाचक होता है, जो शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाता है।
* चितकबरी गाय का दूध पित्त बढ़ाता है, जो शरीर को चंचल बनाता है।
* काले रंग की गाय का दूध मीठा होता है, जो गैस के रोगों को दूर करता है।
* लाल रंग की गाय का दूध रक्त बढ़ाता है, जो शरीर को स्फूर्ति वाला बनाता है।
* पीले रंग की गाय का दूध पित्त को संतुलित करता है, जो शरीर को ओजपूर्ण बनाता है।
गोबर के कितने फायदे...
बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी।
प्लांट के पर्यावरणीय फायदे : एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है।
हाल ही में कानपुर की एक गौशाला ने एक ऐसा सीएफएल बल्ब बनाया है, जो बैटरी से चलता है। इस बैटरी को चार्ज करने के लिए गौमूत्र की आवश्यकता पड़ती है। आधा लीटर गौमूत्र से 28 घंटे तक सीएफएल जलता रहेगा। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
विदेशी गायों का दूध और अन्य कितना हानीकारक
विषाक्त है विदेशी गऊओं का दूध : मथुरा के 'पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय एवं गौपाल अनुसंधान संस्थान' में नेशनल ब्यूरो ऑफ जैनेटिक रिसोर्सिज, करनाल (नेशनल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च, भारत सरकार) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. देवेन्द्र कुमार सदाना द्वारा एक प्रस्तुति 4 सितंबर को दी गई।
मथुरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सामने दी गई प्रस्तुति में डॉ. सदाना ने जानकारी दी कि:-
अधिकांश विदेशी गौवंश (हॉलस्टीन, जर्सी, एचएफ आदि) के दूध में 'बीटा कैसीन ए 1' नामक प्रोटीन पाया जाता है जिससे अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं। पांच रोग होने के स्पष्ट प्रमाण वैज्ञानिकों को मिल चुके हैं-
1. इस्चीमिया हार्ट डिजीज (रक्तवाहिका नाड़ियों का अवरुद्ध होना)।
2. मधुमेह-मिलाइटिस या डायबिटीज टाइप-1 पैंक्रियाज का खराब होना जिसमें इंसुलिन बनना बंद हो जाता है।)
3. आटिज्म (मानसिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म होना)।
4. सीजोफ्रेनिया (स्नायु कोषों का नष्ट होना तथा अन्य मानसिक रोग)।
5. सडन इनफैण्ट डेथ सिंड्रोम (बच्चे किसी ज्ञात कारण के बिना अचानक मरने लगते हैं)।
टिप्पणी : विचारणीय यह है कि हानिकारक 'ए1' प्रोटीन के कारण यदि उपरोक्त पांच असाध्य रोग होते हैं तो और भी अनेक रोग भी तो होते होंगे। यदि इस दूध के कारण मनुष्य का सुरक्षा तंत्र नष्ट हो जाता है तो फिर न जाने कितने ही और रोग भी हो रहे होंगे जिन पर अभी खोज नहीं हुई।
भारतीय गौवंश विशेष क्यों...??
भारतीय गौवंश विशेष क्यों : करनाल स्थित भारत सरकार के करनाल स्थित ब्यूरो के द्वारा किए गए शोध के अनुसार भारत की 98 प्रतिशत नस्लें 'ए2' प्रकार के प्रोटीन वाली अर्थात विषरहित हैं। इनके दूध की प्रोटीन की एमीनो एसिड चेन (बीटा कैसीन ए2) में 67वें स्थान पर 'प्रोलीन' है और यह अपने साथ की 66वीं कड़ी के साथ मजबूती के साथ जुड़ी रहती है तथा पाचन के समय टूटती नहीं।
66वीं कड़ी में एमीनो एसिड आइसोसोल्यूसीन होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत की 2 प्रतिशत नस्लों में 'ए1' नामक एलिल (विषैला प्रोटीन) विदेशी गौवंश के साथ हुए 'म्युटेशन के कारण' आया हो सकता है।
एनबीएजीआर- करनाल द्वारा भारत की 25 नस्लों की गऊओं के 900 सैंपल लिए गए। उनमें से 97-98 प्रतिशत 'ए2ए2' पाए गए तथा एक भी 'ए1ए1' नहीं निकला। कुछ सैंपल 'ए1ए2' थे जिसका कारण विदेशी गौवंश का संपर्क होने की संभावना प्रकट की जा रही है।
गुणसूत्र विज्ञान : गुणसूत्र जोड़ों में होते हैं अत: स्वदेशी-विदेशी गौवंश की डीएनए जांच करने पर 'ए1, ए2', 'ए1, ए2' तथा 'ए2ए2' के रूप में गुणसूत्रों की पहचान होती है। स्पष्ट है कि विदेशी गौवंश 'ए1ए1' गुणसूत्र वाला तथा भारतीय 'ए2ए2' है।
केवल दूध के प्रोटीन के आधार पर ही भारतीय गौवंश की श्रेष्ठता बतलाना अपर्याप्त होगा, क्योंकि बकरी, भैंस, ऊंटनी आदि सभी प्राणियों का दूध विषरहित 'ए2' प्रकार का है। भारतीय गौवंश में इसके अतिरिक्त भी अनेक गुण पाए गए हैं। भैंस के दूध के ग्लोब्यूल अपेक्षाकृत अधिक बड़े होते हैं तथा मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव करने वाले हैं। आयुर्वेद के ग्रंथों के अनुसार भी भैंस का दूध मस्तिष्क के लिए अच्छा नहीं, वातकारक (गठिया जैसे रोग पैदा करने वाला), गरिष्ठ व कब्जकारक है जबकि गौदुग्ध बुद्धि, आयु व स्वास्थ्य, सौंदर्यवर्धक बतलाया गया है।
भारतीय गौवंश अनेक गुणों वाला है :खोजों के अनुसार भारतीय गऊओं के दूध में 'सैरिब्रोसाइट' नामक तत्व पाया गया है, जो मस्तिष्क के 'सैरिब्रम' को स्वस्थ-सबल बनाता है। यह स्नायु कोषों को बल देने वाला व बुद्धिवर्धक है।
केवल भारतीय देसी नस्ल की गाय का दूध ही पौष्टिक : करनाल के 'नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जैनिटिक रिसोर्सेज' (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि भारतीय गायों में प्रचुर मात्रा में ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो उन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की फ्रिक्वेंसी 100 प्रतिशत तक पाई जाती है।
स्वदेशी-विदेशी गौवंश की पहचान : न्यूजीलैंड में विषयुक्त और विषरहित (ए1 और ए2) गाय की पहचान उसकी पूंछ के बाल की डीएनए जांच से हो जाती है। इसके लिए एक 22 डॉलर की किट बनाई गई थी। भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। केंद्र सरकार के शोध संस्थानों में यह जांच होती है, पर किसानों को तो यह सेवा उपलब्ध ही नहीं है। वास्तव में हमें इस जांच की जरूरत भी नहीं है। हम अपने देसी तरीकों से यह जांच सरलता से कर सकते हैं।
किसने शुरु करवाया था कसाईखानों में गौवध... ???
मुस्लिम काल में गौवध नाममात्र था : श्री धर्मपाल द्वारा लिखित साहित्य में दिए गए प्रमाणों के अनुसार मुस्लिम शासन के समय गौवध अपवादस्वरूप ही होता था। अधिकांश शासकों ने अपने शासन को मजबूत बनाने और हिन्दुओं में लोकप्रिय होने के लिए गौवध पर प्रतिबंध लगाए। यह तो वे अंग्रेज और ईसाई आक्रमणकारी थे जिन्होंने भारत में गौवध को बढ़ावा दिया। अपने इस कुकर्म पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने मुस्लिम कसाइयों की नियुक्ति बूचड़खानों में की।
धर्मपालजी द्वारा दिए प्रमाणों से पता चलता है कि ब्रिटेन की रानी के निर्देशन पर मुस्लिम कसाइयों को नियुक्त करने की नीति अपनाई गई थी। आज भी देश में वही अंग्रेजकालीन नीतियां जारी हैं। इनके चलते देश में गौवधबंदी असंभव है। स्मरणीय है कि भारत आज भी इंग्लैंड की डौमिन स्टेट हैं तथा अभी तक हम स्वतंत्र देश नहीं है। यही कारण है कि पूरी संसद द्वारा गौवध बंदी करने का समर्थन करने पर भी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि यदि यह प्रस्ताव पास होता है तो मैं प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र पद से त्यागपत्र दे दूंगा। अनुमान यह है कि गौवध बंदी न करने का इंग्लैंड सरकार का आदेश नेहरू को मिला था।
Beautiful & important post.
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