आध्यात्मिक चिंतन - दुःख ही सुख का कारण है और सुख ही दुख का कारण | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

आध्यात्मिक चिंतन  - दुःख ही सुख का कारण है और सुख ही दुख का कारण | Gyansagar ( ज्ञानसागर )

ये ऐसी बात है जो सूक्ष्म है जल्दी समझ नही आने वाली पर भूत, वर्तमान पर गौर करेंगे तो पाएंगे ये उस शरीर के दो हाथ की तरह है जब एक आगे जाता है तो दूसरा पीछे ! और इसको समझने के बाद व्यक्ति सुख दुख से परे एक ऐसे संतोष को अनुभव करता है जो स्थाई होता है,वो समझ जाता है जीवन मे प्रत्येक घटनाये उस व्यक्ति के भलाई के लिये ही होती है ये एक प्रेरणादायक सीख के तरह होती है पर सूक्ष्म दृष्टि य दिव्य दृष्टि न होने के कारण हम सुख में प्रसन्न और दुख में अप्रसन्न के भाव से प्रभावित होते है !! जिस तरह मानव शरीर के दोनों हाथ चलते हुए आगे पीछे होते है उसी प्रकार मानव जीवन मे भी सुख दुख का ये सिलसिला लगा रहता है और जिस प्रकार मानव शरीर किसी लक्ष्य की ओर हाथ आगे पीछे हिलाते हुए गति प्राप्त करने के लिये चलता है उसी प्रकार मानव जीवन के सफर में भिन्न भिन्न व्यक्ति का भिन्न भिन्न लक्ष्य होता है जिसे पहचानने पर संतोष और परमानंद की अनुभूति होती है ! उसे विश्वास हो जाता है कि उसका चलना एक विशेष लक्ष्य की ओर अर्थात उसका जीवन जीना किसी विशेष लक्ष्य को पाने य पूर्ति हेतु हुआ है और जो मनुष्य ये बात किसी को बता देता है और कोई समझ जाये ! उसे लोकप्रिय ,समाजसेवी और उदारता,ईमानदारी, सत्यनिष्ठा उनमे ये सभी गुण हमेशा मौजूद मिलेंगे !


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